Press Clippings

Press Report with Illustrations on National Seminar on Holistic way of Life & Living held on 23-25 Dec 2016 in collaboration with ICPR

सर्वांगी जीवन पर आयोजित त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन-सत्र का विवरण
प्रस्तुतिः डॉ. बलदेवानंद सागर

२३-दिसम्बर’ २०१६ को सुरत (गुजरात) में ‘होलिस्टिक् साईन्स रिसर्च सेन्टर्, कामरेज-सुरत’ और ‘नेशनल् कोन्सिल् ऑफ् फिलोसोफिकल् रिसर्च’ के संयुक्त तत्वावधान में सर्वांगी जीवन पर आयोजित तीन-दिवस की राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन-सत्र में राष्ट्र के अलग-अलग भागों से आये विशिष्ट विद्वानों और विचारकों ने सर्वांगी मानव जीवन से जुड़े विविध पक्षों पर अपने-अपने उदात्त और सुलझे हुए उदार विचार रक्खें.

संगोष्ठी के शुभारम्भ के लिए उद्घाटन-सत्र की वेदिका पर विराजमान थे – प्रो. एस्. आर्. भट्ट (अध्यक्ष, भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद), प्रो.रामजी सिंह, डी.लिट्., प्रो. जे. एम. दवे (निदेशक, अक्षरधाम-शोध-संस्थान, नई दिल्ली), प्रो. अर्कनाथ चौधरी (कुलपति, श्री सोमनाथ संस्कृत विश्वविद्यालय), एवं प्रो. गोदाबरीश मिश्र (दर्शन विभागाध्यक्ष, मद्रास-विश्वविद्यालय).

होलिस्टिक साइन्स रिसर्च सेन्टर के निदेशक डॉ. बालाजी गणोरकर के आह्वान पर सभी सम्माननीय अतिथि-विद्वानों ने सभागार के बाहर प्रतिष्ठापित पूज्य दादाजी भगवान् की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और श्रद्धा-दीप के प्रज्वालन के साथ इस महनीय संगोष्ठी का शुभारम्भ हुआ. इस अवसर पर सभागार में सुख्यात गायक एवं गीतकार श्रीनवनीत संघवी जी के सुमधुर-कंठ से मीठे-रसीले और आध्यात्मिक-बोध से भरे हुए भजनों की सुमधुर स्वर-लहरियां उपस्थित सहृदयों के मन-मस्तिष्क को झकझोर कर भाव-विभोर कर रही थीं.

ज्योतिबेन और हरीश भाई ने केलिफोर्निया (अमेरिका) से इलेक्ट्रोनिक्-माध्यम से (अन्तर्जाल द्वारा रजत-पट से) उपस्थित सभी अतिथिओं का भावभरा शाब्दिक स्वागत-आवकार कहा. ज्योतिबेन ने अपने सन्देश में (अंग्रेजी में) कहा कि पूज्य दादा भगवान् की अनुकम्पा से उन्होंने (हरीशभाई और ज्योतिबेन ने) सर्वांगी विज्ञान की गूढता को समझ कर जीवन की नश्वरता और परम की सनातनता का अनुभव किया है और पूज्य कनु दादा ने इस सर्वांगी विज्ञान को व्यापकरूप से प्रचारित करने का दायित्व उनको दिया है. इसी प्रकार अपने स्वागत-उद्गारमें (गुजराती-कविता में) हरीशभाई ने अपनेपन से सभी प्रतिनिधियों और निष्णात-विद्वानों के श्रीमुखसे और शोधपत्रों से अभिव्यक्त, पूज्य दादा भगवान् के सर्वांगी-विज्ञान के आनन्द का अनुभव करने का आह्वान किया.

सम्माननीय अतिथि-विद्वानों और सभागार में उपस्थित सभी प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए होलिस्टिक् साईन्स रिसर्च सेन्टर् के निदेशक डॉ. बालाजी गणोरकर ने सूचित किया कि इस सेन्टरकी यह दूसरी राष्ट्रीय संगोष्ठी है. इससे पहले, गुजरात विश्वविद्यालय के दर्शन-विभाग के साथ मिलकर ५ और ६-मार्च, २०१६ को अमदावाद में, होलिस्टिक् साईन्स रिसर्च सेन्टर् ने अपनी प्रथम संगोष्ठी का आयोजन किया था. अपने स्वागत-भाषण में डॉ. गणोरकर ने संगोष्ठी के उद्देश्यों को संक्षेप में रेखांकित करते हुए कहा कि पूरा विश्व हिंसा, अशान्ति, अशिक्षा, असहिष्णुता, भूखमरी और आतंकवाद जैसे मुद्दों से जूझ रहा है. हम लोग फिर एक बार इकठ्ठे हुए हैं और मैं आशा करता हूँ कि इस संगोष्ठी में विद्वानों, चिन्तकों एवं विचारक-अनुसन्धाताओं के द्वारा उपस्थापित विचारों से इन सभी समस्याओं के समाधान में अवश्य मदद मिलेगी. प्रो. एस. आर. भट्ट को धन्यवाद देते हुए डॉ. गणोरकर ने कहा किभारतीय-दार्शनिक-अनुसन्धान-परिषद् के सहयोग से इस संगोष्ठी का आयोजन सुगम बन पड़ा है.

इस अवसर पर सभागार में समुपस्थित विद्वद्-प्रतिनिधियों और आमन्त्रित विशिष्ट-विद्वानों में सर्वश्री ब्रिगेडियर चित्तरंजन सावन्त, प्रो. दीप्ति त्रिपाठी, डॉ. के. के. चक्रवर्ती, डॉ. अनिन्दिता बालस्लेव, प्रो. धर्मसिंह, डॉ. जे. पी. अमीन साहेब आदि विराजमान थे.

अपने आत्मिक और औपचारिक स्वागत-भाषण के बाद निदेशक डॉ.बालाजी गणोरकर ने आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के आद्य संस्कृत-समाचार-प्रसारक डॉ. बलदेवानंद सागर को मंच-सञ्चालन के लिए सप्रेम और साग्रह आमन्त्रित किया सर्वांगी जीवन पर आयोजित तीन-दिवस की राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन-सत्र की शुभारम्भ-वेला में सर्वप्रथम डॉ. सागर ने मंगलाचरण और त्रि-मन्त्र के मंगल-पाठ के लिए श्रीमती इलाबेन पटेल, श्रीमती गीता बेन देसाई और श्रीमती शिल्पा पटेल को आमन्त्रित किया जिन्होंने अपने मधुर-स्वरों से त्रिमन्त्र-पाठ, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, नमः शिवाय और जय सच्चिदानन्द के पवित्र उच्चारण से पूरा परिवेश सात्विकता से भर दि.

इस सर्वाङ्गी और सर्व-दर्शन के समन्वित-स्वरूप को राष्ट्रीय संगोष्ठी की भूमिका के रूप मेंप्रस्तुत करते हुए डॉ. सागर ने “यं शैवाः समुपासते शिव इति ब्रह्मेति वेदान्तिनः,बौद्धाः बुद्ध इति प्रमाण-पटवः कर्त्तेति नैयायिकाः. अर्हन्नित्यथ जैन-शासनरताः कर्मेति मीमान्सकाः, सोsयं नो विदधातु वाञ्छित-फलं त्रैलोक्यनाथो हरिः.|” (अर्थात् जिस त्रिभुवन के स्वामी, सर्जक, रक्षक और संहारक – परम-तत्व, सच्चिदानन्द-परमात्मा को, शैव-मतानुयायी शिव के नाम से जानते हैं, अद्वैत-मतानुयायी, जिसको ब्रह्मके रूप में अनुभव करते हैं, प्रमाण-पटु बौद्ध जिसको बुद्ध के रूप में स्वीकारते हैं, नैय्यायिक जिसको कर्त्ता के रूप में प्रतिष्ठापित करते हैं, जैन-दर्शन के अनुयायी जिसको अर्हत् कहकर बुलाते हैं और मीमांसक जिसको कर्म के रूप में अंगीकार करते हैं, वह हरि ( त्रिविध-ताप को हरने वाले, सच्चिदानन्द-परमात्मा) हमारे मनोरथों को पूरा करें.) यह लोकप्रिय श्लोक और “एकं सद् विप्राः बहुधा वदन्ति” (वह परम तत्व एक है किन्तु अनुभवी, साधक-सन्त, दार्शनिक तथा चिन्तक उसको अलग-अलग नामों से बुलाते हैं) यह प्रसिद्ध वेद-मन्त्र प्रस्तुत किया. इसी बात को पुनः स्पष्ट करते हुए उन्होंने “शिव-महिम्नः स्तोत्र’ के रचनाकार गन्धर्वराज पुष्पदन्त के“त्रयी सांख्यं योगः पशुपति-मतं वैष्णवमिति” – इस श्लोक को भी विद्वानों के सम्मुख रक्खा. उपक्रम के रूप में उन्होंने ये भी कहा कि पूज्य दादा भगवान् का यह समग्रतावादी विज्ञान वैदिक-सनातन धर्म के मौलिक सिद्धान्तों पर आधारित है, जिसको स्वीकार करके और जीवन में क्रियान्वित करके ईक्कीसवीं सदी का वैश्विक मानव शान्ति और सुख का अनुभव कर सकता है.

संगोष्ठी की शुभारम्भ-विधि में “दीपज्योतिः नमोsस्तु ते” के लिए वेदिका पर विराजमान विशिष्ट-अतिथियों, श्री वसंतभाई पटेल, श्री योगेशभाई शुक्लतथा श्रीशैलेशभाई पटेल आदि ने मिलकर मंगलदीप प्रज्वालित किया.

अतिथियों और प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए श्री वसंतभाई पटेल ने कहा कि पूज्य दादा भगवान् की यह हार्दिक इच्छा थी कि सर्वांगी विज्ञान की उनकी विचारधारा को अधिक से अधिक बौद्धिक-जगत् तक पहुँचाया जाए जिससे कि आधुनिक मानव इससे लाभान्वित हो सके. उन्होंने कहा कि मुझे आनन्द है कि हमारा आमन्त्रण स्वीकार करके देश के विभिन्न-भागों से तज्ज्ञ और निष्णात लोग यहाँ पधारे हैं.

वेदिका पर विराजमान अतिथियों का सादर-सत्कार डॉ. बालाजी गणोरकर, श्री लालजीभाई पटेल, श्री वसंतभाई पटेल और श्री योगेशभाई शुक्ल ने पुष्प-गुच्छ व केन्द्र का स्मृतिचिह्न देकर और अंगवस्त्र पहना कर किया. सत्कार-सम्मान और अभिनन्दन-विधि के बाद पूज्य दादा भगवान् के आप्त-शिष्य और सुख्यात गायक-संगीतकार व कविराज श्री नवनीत संघवी जी की सीडी का विमोचन विशिष्ट-अतिथियों के करकमलों द्वारा किया गया. होलिस्टिक् साईन्स रिसर्च सेन्टर् द्वारा प्रकाशित संगोष्ठी की स्मारिका, “Dialogues with Dadaji” (Revised Edition) और “दादांची ज्ञानगोष्ठी” (मराठी, सम्पादक- डॉ. बालाजी गणोरकर, डॉ. सुनन्दा शास्त्री और एल. डी. पटेल) की लोकार्पण-विधि भी इसी अवसर पर संपन्न हुयी.

इस संगोष्ठी की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए श्री एल. डी. पटेल ने कहा कि सर्वांगी विज्ञान से ओतप्रोत जीवन और जीवन-पद्धति पर यह दूसरी राष्ट्रीय संगोष्ठी आप सभी विद्वानों और चिन्तकों के सहयोग से अवश्य ही सफल होगी, ऐसा मेरा विश्वास है और इसी प्रकार हम सब मिलकर पूज्य दादा भगवान् के समग्रतावादी आध्यात्मिक ज्ञान की ज्योति को पूरे विश्व में प्रचारित और प्रकाशित करने में सफल होंगे.

उद्घाटन-सत्र के प्रथम-वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रो.रामजी सिंह ने आज के सन्दर्भ में सर्वांगी विज्ञान और वैज्ञानिक-विधि से पूर्ण समग्रतावादी जीवन-दर्शन की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने कहा कि हमारे वैदिक-वाङ्मय के अध्ययन से पता चलता है कि वैदिक-चिन्तकों ने किस प्रकार से अनूभत आध्यात्मिक सनातन-सत्य और व्यावहारिक-तथ्यों को औपनिषदिक-साहित्य में सरलता से अभिव्यक्त किया है. उन्होंने “ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते.पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते.|- इस बृहदारण्यक-उपनिषद् के शान्ति-मन्त्र का उद्धरण देकर पूज्य दादा-भगवान् के सर्वांगी-विज्ञान की विचारधारा का समर्थन किया.

प्रो. गोदाबरीश मिश्र जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि दर्शन की खोज जीवन के विविध आयामों को सहज-सरल बनाने के किए सतत प्रक्रिया के रूप में सदा चलती रहती है. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो नदी-प्रवाह के समान अनवरत चलती रहती है और नये-नये रहस्यों का उद्घाटन होता रहता है.

प्रो. अर्कनाथ चौधरी ने वैदिक-काल से अपनी बात आरम्भ करके आधुनिक काल की विभिन्न विचारधाराओं को रेखांकित करते हुए सभी रचनात्मक एवं वैश्विक ज्ञान को सराहा और कहा कि प्राच्यविद्या का क्षेत्र बहुत व्यापक है और इस दिशा में मानवको समुचित प्रबोध देने का कार्य करती हैं- उपनिषदों में सभी विचारधाराओं का समावेश या उत्स इसी वैदिक-साहित्य की गंगोत्री से प्रसूत होकर इसी आर्ष गंगा-सागर में विलीन होता है.तभी तो भारत-वर्ष का मनीषी ऊर्ध्वबाहु होकर कहता है-“सर्वे भवन्तु सुखिनः,सर्वेसन्तु निरामयाः.”इसी सन्दर्भ में पूज्य दादा भगवान् के सर्वांगी विज्ञान का यह आध्यात्मिक ज्ञान आज की पीढ़ी को समुचित दिशाबोध देता रहेगा.

प्रो. ज्योतिर्मय दवे ने अपने अभिभाषण में कहा कि भारतीय-जीवन पद्धति या यूं कहे कि हिन्दू-जीवन पद्धति एक गुलदस्ते के समान है जिसमें हर रंग-रूप और सुगंध के सुमन समाये हुए हैं. विश्व की अन्य विचारधाराएँ उतनी लचीली औए उदार नहीं प्रमाणित हुयी हैं जितनी कि वैदिक सनातन-विचारधारा. इसी विचार-धारा की गंगोत्री से प्रवाहित हुयी है पूज्य दादा भगवान् के सर्वांगी विज्ञान-प्रवाह की मंदाकिनी.

कार्यक्रम के इस पड़ाव पर एक ऐसा क्रम आया जब सभी सहृदय सभाजनों को अपनी उपस्थिति की धन्यता का अनुभव हुआ. यह पड़ाव था- पूज्य कनुदादा के रेकोर्डेड (ध्वन्यंकित) आशीर्वचनों को सुनने का...

सभागार में सरल-तरल वाणी में प्रसारित अपने आशीर्वचनों में पूज्य कनु दादा ने, इस संगोष्ठी में देश-विदेश से पधारे हुए महानुभावों, विद्वज्जनों और प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए कहा कि प्रो. एस्. आर्. भट्ट (अध्यक्ष, भारतीय-दार्शनिक-अनुसन्धान-परिषद्) के मार्गदर्शन और सहयोग से आयोजित इस सगोष्ठी में विख्यात चिन्तकों, विचारकों, साधकों और शोधार्थिओं द्वारा प्रस्तुत अपने-अपने मंतव्यों और विचारों के द्वारा ज़रूर ही पूज्य दादा भगवान् के सर्वांगी अक्रम-विज्ञान को सरलता और गहनता के साथ समझने में मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि मैं अपने अंतर्मन से सभी के लिए सच्चिदानन्द परमात्मा से प्रार्थना करता हूँ और इस समग्र-आयोजन के सभी समर्पित कार्यकर्ताओं के कुशल-क्षेम के लिए मंगल-कामना करता हूँ.

अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रो. एस्. आर्. भट्ट ने कहा कि मैं इस शोध-संस्थान के साथ आरम्भ से ही जुड़ा हुआ हूँ और पूज्य श्री कनु दादा, श्री वसन्तभाई, श्री उत्तमभाई, श्रीशैलेशानन्द जी एवं अन्य सभी, इस केन्द्र के आप्त-सदस्यों से सुपरिचित हूँ. इस सेमिनार से पहले भी, भारतीय-दार्शनिक-अनुसन्धान-परिषद् और होलिस्टिक् साईन्स रिसर्च सेन्टर्, मिलकर कई राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार का सफल आयोजन कर चुकें हैं. उन्हों ने कहा कि उन संगोष्ठियों में प्रस्तुत किये गये सभी शोध-पत्रों और निष्णातों के विचारों का प्रकाशन भी किया गया है. मुझे प्रसन्नता है कि मैं इस संगोष्ठी के आज के इस सत्र में उपस्थित हूँ. जैसा कि मैंने पहले कहा – हम सब पूज्य दादा भगवान् के सन्देशों और आध्यात्मिक अनुभवों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए कटिबद्ध हैं. भारतीय-दर्शन, जीवन की व्यापकता को यथार्थ और संसार यानी ब्रह्म और माया के रूप में सहजरूप में स्वीकार करता है तथा इसी तत्वज्ञान (सच्चिदानन्द-स्वरूप) को परिभाषित करने के लिए “एकं सद् विप्राः बहुधा वदन्ति” का घोष वैदिक-मनीषियों ने किया. पूज्य दादा भगवान् का यही साक्षात्-अनुभूत ज्ञान आज के सन्दर्भ में अधिक प्रासंगिक है और इस सर्वांगी अक्रम-विज्ञान के अनुसार वैज्ञानिक जीवन-पद्धति के अधिकाधिक प्रचार-प्रसार के लिए इसी प्रकार के सेमिनार, भविष्य में भी देश-विदेश में संयुक्त-रूप से आयोजित करने का शुभ संकल्प करते हैं.

अध्यक्षीय-उद्बोधन के बाद इस सत्र की सम्पूर्ति-विधि यानी कि धन्यवाद-ज्ञापनविधि की बारी आयी. होलिस्टिक् साईन्स रिसर्च सेन्टर् के पन्जीयक श्री योगेश शुक्ल ने अपनी सहज एवं सौहार्दपूर्ण शैली में वेदिका पर स्थित सभी विशिष्ट-जनों एवं सभाजनों के लिए साधुवाद ज्ञापित किया. राष्ट्रगान के साथ यह महनीय उद्घाटन-सत्र सम्पन्न हुआ. समग्र विचारगोष्ठी का जीवंत प्रसारण इन्टरनेट द्वारा उपलब्ध किया गया.

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કામરેજ દાદા ભગવાન મંદિરે માનવ જીવન અંગે પરિસંવાદ

db 14012015

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Title song:  Ye Vishwa me Sukh aur Shanti ho
(ये विश्व में सुख और शान्ति हो)
Lyric, Music:  Kaviraj Navaneet Sanghavi
कविराज नवनीत संघवी
Singer:  Kaviraj Navneet Sanghavi & Chorus
कविराज नवनीत संघवी व साथी

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